श्रव्य-माध्यम' से क्या तात्पर्य है? भारतवर्ष में रेडियो के विकास का परिचय प्रस्तुत कीजिए।
श्रव्य-माध्यम' से क्या तात्पर्य है? भारतवर्ष में रेडियो के विकास का परिचय प्रस्तुत कीजिए।
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'श्रव्य-माध्यम' से तात्पर्य है सूचना एवं संचार का ऐसा माध्यम जिसके द्वारा इच्छित सूचना, समाचार या अन्य कार्यक्रम ध्वनि के रूप में व्यापक जन-समूह तक प्रसारित किया जाता है। श्रव्य माध्यम का सबसे अच्छा उदाहरण रेडियो है। यों तो टेलीफोन भी श्रव्य माध्यम के अन्तर्गत आ सकता है, किन्तु टेलीफोन पर केवल दो व्यक्तियों के बीच बातचीत हो पाती है। कोई सूचना या समाचार हम टेलीफोन के द्वारा व्यापक जन-समुदाय तक नहीं पहुँचा सकते। इसलिए टेलीफोन जन-माध्यम की श्रेणी में नहीं आ सकता।
रेडियो का संक्षिप्त परिचय- रेडियो का आविष्कार 19वीं शताब्दी में हुआ। वास्तव में रेडियो की कहानी 1815 ई. से आरम्भ होती हैं, जब इटली के एक इंजीनियर गुग्लियों मार्कोनी ने रेडियो टेलीग्राफी के जरिए पहला सन्देश प्रसारित किया। यह सन्देश 'मोर्सकोड' के रूप में था। रेडियो पर मनुष्य की आवाज पहली बार सन् 1906 में सुनाई दी। यह तब सम्भव हुआ, जब अमेरिका के ली डी फारेस्ट ने प्रयोग के तौर पर एक प्रसारण करने में सफलता प्राप्त की। उसने एक परिष्कृत निर्वात नलिका का आविष्कार किया, जो आने वाले संकेतों को विस्तार देने के लिए थी। डी फारेस्ट ही था, जिसने सर्वप्रथम, 1916 ई. में पहला रेडियों समाचार प्रसारित किया। वह समाचार वास्तव में संयुक्त राष्ट्र में राष्ट्रपति चुनाव के परिणाम की रिपोर्ट थी। 1920 ई. के बाद तो अमेरिका और ब्रिटेन ही क्या, विश्व के कई देशों में रेडियो ने धूम मचा दी। इसी अवधि में यूरोप, अमेरिका तथा एशियाई देशों में बहुत-से शोधकार्य हुए थे। इन शोधकार्यों के फलस्वरूप रेडियो ने अभूतपूर्व प्रगति की। कालान्तर में इलेक्ट्रॉन तथा ट्रांजिस्टर की खोज ने रेडियो, ट्रांजिस्टर तथा दूर-संचार के क्षेत्र में बहुत विकास किया।
भारत में रेडियो का उद्भव और विकास- भारतवर्ष में रेडियो प्रसारण का इतिहास सन् 1926 से शुरू होता है। बम्बई, कलकत्ता तथा मद्रास में व्यक्तिगत रेडियो क्लब स्थापित किए गए थे। इन क्लबों के व्यवसायियों ने एक प्रसारण कम्पनी गठित की थी और उसके माध्यम से निजी प्रसारण सेवा आरम्भ कर दी। सन् 1926 में ही तत्कालीन भारत सरकार ने इस प्रसारण कम्पनी को देश में प्रसारण केन्द्र स्थापित करने का लाइसेंस प्रदान किया। इस कम्पनी की ओर से पहला प्रसारण 23 जुलाई, 1927 को बम्बई से हुआ। इसे 'इण्डिया ब्राडकास्टिंग कम्पनी' ने प्रसारित किया था। इसी के साथ बम्बई रेडियो स्टेशन का उद्घाटन तत्कालीन वाइसराय लार्ड इर्विन ने किया था। इस विचार से भारत का पहला रेडियो स्टेशन बम्बई में स्थापित हुआ। इसके बाद 26 अगस्त, 1927 को कलकत्ता केन्द्र का उद्घाटन हुआ।' यह एक संघर्षपूर्ण शुरुआत थी। कम शक्ति के मध्यम तरंग-प्रेषक (मीडियम वेव ट्रांसमीटर) लाइसेंस की तुलना में कम आय तथा लागत की अधिकता आदि के कारण यह कम्पनी (इण्डिया ब्राडकास्टिंग कम्पनी) बन्द होने की स्थिति में आ गई। इसी दौरान 1930 ई. में प्रसारण सेवा का प्रबन्ध भारत सरकार ने अपने अधिकार में ले लिया। अब इसका नाम हो गया 'इण्डियन स्टेट ब्रांडकास्टिंग सर्विस'। यह 'सर्विस' विकसित होती चली गई और बाद में चलकर 1936 में इसका नाम 'ऑल इण्डिया रेडियो' हो गया।
यहाँ यह उल्लेख करना भी जरूरी है कि 1935 ई. में तत्कालीन देशी रियासत मैसूर में एक स्वतन्त्र रेडियो स्टेशन की स्थापना हुई थी। मैसूर रियासत के इस रेडियो स्टेशन का नाम 'आकाशवाणी' रखा गया था।
जब देश आजाद हुआ, तो 1957 ई. में भारत सरकार ने इस संगठन का नाम 'आकाशवाणी' घोषित किया, जो मैसूर रियासत के रेडियो स्टेशन का नाम हुआ करता था। लेकिन तब से 'आकाशवाणी' नाम का प्रयोग हिन्दी तथा अन्य भारतीय भाषाओं में समान रूप से हो रहा है। हाँ, अंग्रेजी प्रसारणों और विदेश सेवा के प्रसारणों में अभी भी 'आल इण्डिया रेडिया' ही प्रसारित होता है।
स्वतन्त्रता के बाद से 'आकाशवाणी/ऑल इण्डिया रेडियो' का व्यापक प्रसार हुआ है। सन् 1947 में जहाँ पूरे देश में मात्र 6 प्रसारण केन्द्र, एक दर्जन ट्रांसमीटर और दो-ढाई लाख रेडियो सैट थे, वहीं आज हमारे पास 100 से अधिक रेडियो स्टेशन हैं, जो देश के तीन चौथाई से अधिक भौगोलिक क्षेत्र तथा 90 प्रतिशत के लगभग जनसंख्या को अपनी प्रसारण सीमा में लिए हुए हैं। करीब तीन करोड़ या इससे अधिक रेडियो सैट देश के घरों में बज रहे हैं।
हमारे देश में ही नहीं, अपितु दुनिया के प्रायः हर देश में रेडियो-प्रसारण की स्थिति में क्रान्तिकारी प्रगति हुई और इस जन-माध्यम को एक व्यापकं समाज रुचिपूर्वक अपना चुका है।
भारत में टेलीविजन के इतिहास पर प्रकाश डालिए।
आज फिल्म और टेलीविजन की लोकप्रियता सबसे अधिक है, बल्कि फिल्म माध्यम भी अब टेलीविजन के साथ साठ-गाँठ कर हमारे जीवन का चेहरा बदल रहा है। सच तो यह है कि इन इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों ने जहाँ मनुष्य को घर बैठे सारी दुनिया से जोड़ दिया है, वहीं पर शिक्षित होते हुए भी अशिक्षा के अंधकार की ओर लौट रहा है। यह बात अतिशयोक्तिपूर्ण और विरोधाभासी लग सकती है, लेकिन तटस्थ विश्लेषण करने पर सच साबित होगी। टेलीविजन (टी. वी.) ने हमारे पढ़ने की आदत बिगाड़ दी है, उसी तरह जिस तरह कम्प्यूटर ने हमारी गणित की क्षमता को बाँध दिया है। यह एक कटु सत्य है। इसके बावजूद फिल्म, दूर-दर्शन (टीवी) और कम्प्यूटर की उपयोगिता एवं लोकप्रियता में कोई कमी नहीं आई है। यह दिन-पर-दिन बढ़ती ही जा रही है।
टेलीविजन आज के युग में संचार माध्यम सबसे बड़ा माध्यम है, जिसके द्वारा आज मानवीय संवेदनाएँ एकदम संचार के एक कोने से दूसरे कोने में प्रकट की जाती हैं और भावनाओं के इस समुद्र को उजागर करने के शायद आज का सबसे बड़ा सशक्त माध्यम है- दूरदर्शन । पत्रकारिता के क्षेत्र में एक नया आयाम तब जुड़ा जब टेलीविजन का आविष्कार हुआ। दूरदर्शन मीलों दूर बैठे किसकी दृश्य, या वस्तु का हूबहू दर्शन। पहले प्रेस, रेडियो और फिर दूरदर्शन। हर माध्यम की अपनी सीमाएँ हैं जिन्हें कुछ हद तक रेडियो ने दूर किया और धीरे-धीरे पत्रकारिता के क्षेत्र में रेडियो अपना विशेष एवं अलग स्थान बना सका। रेडियो के माध्यम से जहाँ एक ओर 'समाचार को तुरन्त दूर-दराज के क्षेत्रों तक पहुँचाने की विशेषता थी वहीं समाचार का संक्षिप्तीकरण, समय की सीमा और सिर्फ समाचार सुनाया जाना और सुनना ही था। इस तरह अपने-आप में पूर्ण होकर भी अपूर्ण था। दूरदर्शन से पत्रकारिता में मानों क्रान्ति आ गई तथा रेडियो पत्रकारिता में लगभग वैसे ही एक मोड़ आ गया जो कभी अखबारों के मार्ग में रेडियो के आविष्कार से आया था। अब श्रवण के साथ-साथ उस घटना वस्तु, परिस्थिति या क्रम की हूबहू तस्वीर भी भेजी और प्राप्त की जा सकती है। श्रोता, दर्शक समाचारों या किसी घटना विशेष की जानकारी और पृष्ठभूमि समझने के लिए श्रवण के साथ दृश्य की सुविधा का लाभ भी प्राप्त कर सकते हैं। रेडियो की कुछ कमियाँ और सीमाएँ दूरदर्शन के आविष्कार से दूर हो गईं।
भारत में टेलीविजन का विकास - भारत में प्रथम प्रायोगिक टेलीविजन केन्द्र का उद्घाटन 15 सितम्बर, 1959 को देश प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के हांथों सम्पन्न हुआ। इसकी शुरुआत के मूल में यूनेस्को का एक सम्मेलन था। इस सम्मेलन में यूनेस्को ने भारत को 20,000 डालर का अनुदान स्वीकृत किया था। उद्देश्य था, एक जनमाध्यम के रूप में टेलीविजन के प्रयोग का अध्ययन करने हेतु एक पायलट परियोजना की स्थापना। इस नए संचार-माध्यम को स्कूली बच्चों की औपचारिक शिक्षा में सहायता करने एवं आम आदमी को दिखाए जाने वाले सामुदायिक विकास कार्यक्रम तैयार करने के लिए शुरू किया जाना था। उस समय इन प्राथमिक उद्देश्यों को ध्यान में रखकर संयुक्त राज्य अमेरिका सरकार और यूनेस्को के सहयोग से आकाशवाणी भवन में एक छोटा-सा टेलीविजन स्टूडियो स्थापित किया गया। यूनेस्को ने टेलीक्लबों को निःशुल्क टीवी सेट दिए। ये आरम्भिक कार्यक्रम उत्साहवर्द्धक सिद्ध हुए और 1961 ई. में उच्चतर विद्यालयों के लिए एक नियमित टीवी कार्यक्रम शुरू हुआ। 1965 ई. में सरकार ने जनता की माँग और अनुकूल परिणामों से उत्साहित होकर शिक्षा के साथ मनोरंजपरक कार्यक्रम बनाने और प्रसारित करने का निश्चय किया। उल्लेखनीय है कि भारत में सबसे पहला समाचार बुलेटिन 15 अगस्त, 1965 को प्रसारित हुआ।
1 अप्रैल, 1976 से हमारे यहाँ टेलीविजन 'दूरदर्श' नाम से आकाशवाणी से अलग होकर स्वतंत्र अस्तित्व में आ गया। आज इसके 8 चैनल हैं और कई निजी चैनल कार्यरत हैं।
आज दूरदर्शन प्रतिदिन लोकप्रिय होता जा रहा है। इसकी लोकप्रियता से ऐसा लगता है कि यह एक दिन संचार के दूसरे माध्यमों को निगल जायेगा। पश्चिमी देशों में तो दूरदर्शन सुबह के समाचार-पत्रों से भी पहले लोगों तक खबरें पहुँचा देता है। विश्व में घट रही घटनाओं की जानकारी • एकदम आदमी के सामने हूबहू पेश हो जाती है, ये मामूली बात नहीं है। समाचार-पत्रों की अपेक्षा लोग दूरदर्शन की खबरों पर ज्यादा आश्रित होने लगे हैं। 1 अप्रैल, 1976 को सूचना और प्रसारण मंत्रालय से सम्बद्ध दूरदर्शन के लिए निम्नलिखित लक्ष्य निर्धारित किये गए-
1. सामाजिक परिवर्तन में प्रेरक भूमिका निभाना।
2. राष्ट्रीय एकता को प्रोत्साहन देना।
3. जन-सामान्य में वैज्ञानिक चेतना जगाना।
4. परिवार कल्याण और जनसंख्या नियन्त्रण के संदेश को प्रसारित करना।
5. कृषि-उत्पादन प्रोत्साहित कर 'हरित क्रांति' और पशु-पालन को बढ़ावा देकर श्वेत क्लांति' के क्षेत्र में प्रेरणा देना।
6. पर्यावरण संतुलन बनाये रखना।
7. गरीब और निर्बल वर्गों हेतु सामाजिक कल्याण के उपायों पर बल देना।
8 . खेल-कूद में रुचि बढ़ाना।
9. भारत की कला और सांस्कृतिक गरिमा के प्रति जागरूकता पैदा करना।
फिल्म क्या है? वर्णन कीजिए।
सौ वर्ष पूर्व मूवी कैमरे की आविष्कार हुआ जिसके परिणामस्वरूप चलचित्र का आविर्भाव हुआ। इसने कुछ ही वर्षों में सारे संसार को अपनी मायावी जकड़ में ले लिया। प्रारम्भ में चलचित्र मूक थे, परन्तु तीन दशक के बाद वे सवाक् हो गए। पहले वे श्वेत-श्याम थे। धीरे- धीरे रंगीन हो गए। इसके बद त्रिआयामी चलचित्र बने, परन्तु अधिक देर तक चल नहीं पाये। प्रारम्भ में चलचित्र मनोरंजन का माध्यम थे, परन्तु वृत्तचित्रों और न्यूज रीलों के द्वारा वे ज्ञान सूचना का प्रचार-प्रसार भी करते थे। टेलीविजन के आगमन से पूर्व यह मध्य वर्ग और निम्न वर्ग के मनोरंजन का सस्ता और लोकप्रिय साधन था।
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