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सृजनात्मकता के स्वरूप अथवा विशेषता का वर्णन कीजिये।Describe the nature or characteristics of creativity.

 सृजनात्मकता के स्वरूप अथवा विशेषता का वर्णन कीजिये।Describe the nature or characteristics of creativity.

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सृजनात्मकता जन्मजात न होकर अर्जित की जाती है। सृजनात्मकता प्राचीन अनुभवों पर आधारित नवीन सम्बन्धों की रूपरेखा तथा नूतन साहचर्यों काः सम्बोध कही जा सकती है। निम्न बिन्दु सृजनात्मकता के स्वरूप या विशेषताओं को स्पष्ट करते हैं-

1. सभी व्यक्तियों में विभिन्न प्रकार की तथा विभिन्न श्रेणी की सृजनात्मकता पायी जाती है। सृजनात्मकता केवल कुछ चुने हुए व्यक्तियों तक ही सीमित नहीं रहती बल्कि यह सभी व्यक्तियों का सामान्य गुण है।

2. सृजनात्मकता एक जटिल प्रक्रिया है, जिसे समय, स्थान तथा व्यक्ति से बाँधा नहीं जा सकता। इसका प्रादुर्भाव कही भी किसी भी समय पर हो सकता है। बालकों, बड़ों, पुरुषों तथा स्त्रियों सभी में सृजनात्मकता पायी जा सकती है।

3. सृजनात्मकता में विभिन्न शील-गुण पाये जाते हैं। इसकी सर्वाधिक मान्य प्रमुख विशेषताएँ होती हैं-निरन्तरता, नमनीयता, विस्तारता, मौलिकता, समस्याओं के प्रति संवेदनशीलता एवं निर्णय लेने की शैली आदि।

4. बुद्धि में निहित योग्यताओं से सृजनात्मक चिन्तन में निहित योग्यताएं भिन्त्र होती हैं। सृजनात्मकता अपसारी चिन्तन पर आधारित है, जबकि बुद्धि में अभिसारी चिन्तन का अधिक प्रयोग होता है। यह आवश्यक नहीं है कि संभी बुद्धिमान व्यक्ति सृजनात्मक भी हों।

5. सृजनात्मकता का प्रादुर्भाव अचानक नहीं होता, यद्यपि सृजनात्मक विचार अचानक ही बिजली की भाँति प्रकट होते दिखायी देते हैं। सृजनात्मकता का उदय उसी भाँति क्रमिक होता है; जैसे-दिन का निकलना।

6. जीवन के आरम्भ से ही सृजनात्मकता का प्रादुर्भाव होता है और इसका विकास सामाजिक पर्यावरण पर बहुत कुछ निर्भर करता है।

सृजनात्मकता के स्वरूप अथवा विशेषता का वर्णन कीजिये।Describe the nature or characteristics of creativity.

7. सृजनात्मकता सम्बन्धी योग्यताओं का विकास अन्य योग्यताओं के विकास से भिन्न होता है। इसके विकास की गति एक-सी नहीं रहती।

8. सृजनात्मकता को मापा जा सकता है किन्तु एक ही परीक्षा के द्वारा सभी प्रकार की सृजनात्मकता को मापना सम्भव नहीं है।

9. सृजनात्मकता का विकास जीवन के विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित है। इसके लिये किसी विशेष व्यक्ति या विषध का होना आवश्यक नहीं है।

10. सृजनशील व्यक्तियों में प्रवाहता (Fluency) होती है। वे अपने विचारों को प्रवाहता के साथ प्रदर्शित कर सकते हैं।

11. सृजनात्मकता एक प्रक्रिया या योग्यता है, यह उत्पादन (Product) नहीं है।

12. सृजनात्मकता की प्रक्रिया लक्ष्य निर्देशित (Goal directed) होती है। यह या तो व्यक्ति के लिये लाभदायक होती है अथवा समूह या समाज के लिये लाभदायक होती है।

13. सृजनात्मकता चाहे मौखिक हो या लिखित, चाहे मूर्त हो या अमूर्त। प्रत्येक अवस्था में व्यक्ति के लिये यह अभूतपूर्व (unique) होती है। यह किसी नये और भिन्न उत्पादन का मार्ग-निर्देशन करती है।

14. सृजनात्मकता एक प्रकार की नियन्त्रित कल्पना है, जिससे किसी न किसी उपलब्धि को निर्देशन प्राप्त होता है।

सृजनात्मक व्यक्ति की विशेषता बताइये।

सृजनात्मक व्यक्ति को उसके गुण, कार्य एवं व्यवहार के आधार पर पहचाना जा सकता है क्योंकि सृजनात्मक बालक विभिन्न प्रकारों में सामान्य बालकों से भिन्न होता है। इसी प्रकार के अनेक कार्य ऐसे होते हैं जो कि सामान्य बालकों एवं सृजनात्मक बालकों में अन्तर स्थापित करते हैं।

सृजनात्मक बालकों या व्यक्तियों की प्रमुख विशेषताएँ निम्न हैं-

1. सृजनात्मक व्यक्ति जिज्ञासु होता है- सृजनात्मक व्यक्ति पूर्णतः जिज्ञासा से सम्पन्न माना जाता है। वह प्रत्येक विचार या घटना के बारे में विभिन्न प्रकार के प्रश्न पूछता है तथा जब तक उसकी जिज्ञासा शान्त नहीं होती ज्ञान प्राप्त के लिये व्याकुल रहता है। प्रत्येक घटना के सन्दर्भ में वह सकारात्मक एवं विश्लेषणात्मक रूप से अध्ययन करने का प्रयास करता है जिससे वह घटना के मूल तथ्य एवं कारण तक पहुंच सके।

2. सृजनात्मक व्यक्ति चुनौतियाँ पसन्द करते हैं- सृजनात्मक व्यक्ति कभी भी चुनौतियों से नहीं डरता। वह प्रत्येक चुनौती का साहस से सामना करता है तथा परिस्थितियों को अपने अनुकूल बनाने का प्रयास करता है। वह प्रत्येक समस्या का समाधान अपनी क्षमता एवं योग्यता के आधार परं करता है। इसलिये वह आत्म-विश्वास से परिपूर्ण होता है।.

3. सृजनात्मक व्यक्ति उच्च मानसिक स्तर के होते हैं- सृजनात्मक व्यक्तियों की मानसिकता उच्च स्तरीय होती है। वह किसी सामान्य व्यवस्था को स्वीकार करने में विश्वास नहीं रखते वरन उसके सर्वोत्तम स्वरूप को विकसित करने तथा उसको अधिक उपयोगी बनाने में विश्वास रखते हैं। इस प्रकार की मानसिकता एक ओर उनकी सृजनात्मकता में वृद्धि करती है वहीं दूसरी ओर विकास मार्ग को प्रशस्त करती है।

4. आलोचनात्मक चिन्तन एवं सृजन में विश्वास - सृजनात्मक व्यक्ति में आलोचनात्मक चिन्तन एवं सृजन के प्रति उत्सुकता पायी जाती है। ऐसे व्यक्ति प्रत्येक घटना को ज्यों का त्यों स्वीकार नहीं करते वरन् उस पर विचार करके उसे सर्वोत्तम बनाने का प्रयास करते हैं। इस प्रकार के व्यक्तियों को सृजनात्मक परिस्थितियों के निर्माण में कुशलता प्राप्त होती है क्योंकि वे प्रत्येक परिस्थिति को अपने अनुरूप बनाने में सफल होते हैं। प्रस्तुतीकरण की योग्यता भी इनका श्रेष्ठ एवं उपयोगी गुण होता है।

5. अनुसन्धान की प्रवृत्ति- सृजनात्मक व्यक्तियों में अनुसंधान की प्रवृत्ति पायी जाती है जिसके आधार पर ये प्रत्येक अवस्था को उसके सामान्य स्वरूप में स्वीकार नहीं करते उसमें नया परिवर्तन करने का विचार रखते हैं। इसके लिये ये विभिन्न प्रकार के प्रयोग करते हैं। इस प्रकार के कार्य ये सिद्ध करते हैं कि एक सृजनात्मक व्यक्ति अनुसन्धान एवं प्रयोगों के प्रति सकारात्मक भाव रखता है।

6. प्रामाणिक तथ्यों का संकलन- सृजनात्मक व्यक्ति किसी भावना या विचारों में बहकर कार्य योजना का निर्माण नहीं करते वरन् प्रामाणिक तथ्यों के आधार पर अपनी योजना बनाते हैं जिससे कि उस योजना के व्यावहारिक एवं सार्थक परिणाम निकलें; जैसे-एक व्यक्ति समाज में व्याप्त कुरीतियों के बारे में अपना चिन्तन प्रारम्भ करने पर स्वस्थ परम्पराओं का विकास करना चाहता है तो वह कुरीतियों से सम्बन्धित सत्य घटनाओं को अपने चिन्तन का आधार बनायेगा।

7. वैज्ञानिक दृष्टिकोण - सृजनात्मक व्यक्तियों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का प्रभाव देखा जाता है। इस प्रकार के व्यक्ति सामाजिक व्यवस्था में भी उन विचारों एवं परम्पराओं को स्थान देते हैं जिनका प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से विज्ञान से सम्बन्ध होता है। इनके कार्य एवं व्यवहार में तथ्यों का क्रमबद्ध प्रस्तुतीकरण देखा जाता है।

कविता क्या है? इसकी अवधारणा स्पष्ट कीजिए। अथवा काव्यं किसे कहते हैं? इसके प्रकार बताइये।

कविताओं का तुकबंदी होना जरूरी नहीं है; उन्हें किसी विशिष्ट प्रारूप में फिट होने की आवश्यकता नहीं है, और उन्हें किसी विशिष्ट शब्दावली का उपयोग करने या किसी विशिष्ट विषय के बारे में बात करने की आवश्यकता नहीं है। लेकिन यहाँ उन्हें क्या करना हैः आलंकारिक भाषा का उपयोग करके कलात्मक रूप से शब्दों का उपयोग करें। एक कविता में, रूप उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि कार्य-शायद उससे भी अधिक।

अवधारणा- दुनिया के थोड़े ही ऐसे लोग होंगे जो कविता से परिचित न हों, पर यह भी सही है कि सबके मन में इस शब्द से एक-सी छवि नहीं उभरती बल्कि कविता की व्यक्ति-व्यक्ति की अपनी परिभाषा है। एक अवधारणा की अनेक छवियों का बनना असम्भव नहीं है पर यह स्थिति इस अवधारणा के स्पष्ट अर्थ की प्राप्ति में बाधा जरूर बनती है। 'कविता' शब्द से बनने वाली अनेक छवियों के बावजूद प्रत्येक, पाठक, श्रोता या ग्राहक के लिए उसका एक सामान्य अर्थ ज़रूर है। वह सामान्य अर्थ कविता के विशिष्ट संयोजन से, उसकी संरचना से उभरता है। साहित्य की सभी विधाएँ भाषा के उपकरणों को अपने-अपने ढंग से प्रयोग में लाती है। कविता में भी ये भाषा उपकरण विशिष्टता के साथ ग्रहण किए जाते हैं। कविता की परिभाषा उसकी आत्मा, उसके आन्तरिक स्वरूप की चर्चा बाद में आती है। प्रथमतः कविता का स्वरूप- संयोजन उसके विशिष्ट रूपपरक नाम का आधार बनता है। पारस्परिक एवं रूढ़ रूप में तो छन्दोबद्धता कविता का वह स्पष्ट दर्शनीय लक्षण बनता है, जो अन्य से उसे अलग करता है। लम्बे समय तक तो हिन्दी में तुक भी उसकी ऊपरी पहचान दिखाई देती है जबकि संस्कृत कविता में छन्द का रिश्ता तो कविता से लगभग स्थायी रहा है पर तुक की उपस्थिति अपवाद रूप में ही दिखलाई देती है। पिछले पचास वर्षों की कविता के संयोजन पर ध्यान दें तो पाते हैं कि न तो परम्परागत छन्द का ढाँचा उसमें प्रमुख नजर आता है और न ही तुक की अनिवार्यता दिखलायी देती है। उसके बावजूद कविता की शब्द-संयोजना अन्य रूपों से भिन्न है, विशिष्ट है। यह विशिष्टता, आंशिक रूप में ही सही- लय, छन्द एवं संगीत में निहित है, भले ही कविता मुक्त छन्द में ढली हो। ज्यों ही हम इस बाहरी ढाँचे के थोड़ा भीतर तक झाँककर देखते हैं तो पाते हैं कि कविता दूसरे साहित्य-रूपों से अपनी भाषा-संरचना में भी भिन्न है। यह भिन्नता एक • कल्पना-प्रसूत, भावाभिव्यंजक, सौन्दर्य-सर्जक, उदात्त एवं कुछ-कुछ असामान्य भाषा-व्यवहार में दिखलाई देती है। विशेष यह है कि कई बार तो यह असामान्यता बहुत सामान्य भाषा के द्वारा पैदा की जाती है। कविता की रचना प्रक्रिया की यात्रा मूलतः अनुभावन से रूपायन की यात्रा हैं आई. ए. रिचर्ड्स ने काव्य-भाषा की निर्माण प्रक्रिया में sense (आशय) feeling (अनुभूति) tone (ध्वनि) और motive (अभिप्राय) का उल्लेख किया है। इस प्रक्रिया में कविता भाषा की प्रतिमानक व्याकरणता को तोड़ती हुई एक नयी व्यवस्था को रचती है। अर्थगत सन्दर्भों में यह रचना सादृश्य-विधान के द्वारा रूपकात्मक भाषा का निर्माण करती है, अर्थ-विस्तार के लिए प्रतीकात्मक भाषा रचती है, कथ्य को इन्द्रिय-संवेद्य बनाने के लिए बिम्बों का निर्माण करती है और ये सभी तत्व अन्ततः एक तरल-सघन आवेगमूलक सर्जना को सम्भव बनाते हैं। यह आवेगमूलकता ही रागात्मकता है और रचना का प्राण भी है। विशेष ध्यान देने की बात यह भी कि यह रागात्मकता एक साथ कथ्य भी है, शिल्प भी; शब्द भी है, अर्थ भी; बाहरी भी है और भीतरी भी। 'राग' का संगीतपरक अर्थ यहाँ कहीं भी 'व्यर्थ' नहीं है, इसलिए कविता की भाषा की रागात्मकता की जब बात होती है, तो उसके संवेदना-तन्तुओं क साथ शब्दजन्य झंकृतियाँ भी जुड़ी हुई हैं। ये झंकृतियाँ विशेष शब्दों के चयन से तो जन्म लेती ही हैं, उनका क्रम भी इन झंकृतियों को सम्भव बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निबाहता है। यह शब्द-चयन और शब्दानुक्रम जितना सहज और स्वाभाविक दिखे, उतना ही प्रभावपूर्ण होगा। पर 'दिखे' का अर्थ यह नहीं है कि उसके पीछे कवि का श्रम, उसकी साधना, उसका अनुसन्धान नहीं होता। यह श्रम कविता में जो आवेग, झंकृति, प्रवाह, मारकता और वेधकता पैदा करता है, उसके मूर्त रूप को हम कविता की लय में, उसकी तुकान्तता में, उसकी गति में, उसकी यति में देखते हैं। ये सारे कवि-श्रमजन्य तत्त्व कविता को आदि से अन्त तक आच्छादित कर लेते हैं। पर यह आच्छादन वायु-सा विरल, जल-सा तरल, और प्रकाश-सा दीप्तिमान होता है, इसे ही छन्द कहते हैं।

सृजनात्मकता के स्वरूप अथवा विशेषता का वर्णन कीजिये।Describe the nature or characteristics of creativity.

काव्य रूपों के प्रकार - कविताएँ कई प्रकार की होती हैं। कुछ में बहुत सख्त शैली नियम होते हैं, जबकि अन्य को उनकी संरचना के बजाय उनके द्वारा कवर किए गए विषयों के अनुसार वर्गीकृत किया जाता है। जब आप कविता लिख रहे हों, तो विचार-मंथन करते समय आप जिस रूप में लिख रहे हैं उसे ध्यान में रखें ऐसे रूपों के साथ जिनमें तुकबंदी शामिल हो या विशिष्ट संख्या में अक्षरों की आवश्यकता हो, आप शायद उन शब्दों की एक सूची लिखना चाहेंगे जो उपयुक्त हों।

हाइकु - हाइकु एक तीन पंक्तियों वाली कविता है जो हमेशा इस प्रारूप में फिट बैठती है; पहली और तीसरी पंक्तियों में पाँच अक्षर होते हैं और दूसरी पंक्ति में सात अक्षर होते हैं।

लिमरिक - लिमरिक एक पाँच-पंक्ति की कविता है जो सख्त AABBA कविता योजना का अनुसरण करती हैं। हालाँकि वे अक्सर हास्यप्रद विषयों पर चर्चा करते हैं, यह कोई आवश्यकता नहीं है - एकमात्र आवश्यकता यह है कि यह इस सटीक तुकबंदी पैटर्न में फिट बैठता है।

गाथा - सॉनेट एक चौदह पंक्तियों की कविता है जिसका प्रयोग अक्सर शेक्सपियर और पेट्रार्क द्वारा किया जाता था। हालाँकि एक सॉनेट की सटीक छंद योजना कविता से कविता में भिन्न होती है, प्रत्येक सॉनेट में कुछ प्रकार का सुसंगत कविता पैटर्न होता है।

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